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What is Ayurveda?
आयुर्वेद क्या है?


आयुर्वेद प्राचीन भारतीय प्राकृतिक और समग्र वैद्यक-शास्र चिकित्सा पद्धति है। जब आयुर्वेद का संस्कृत से अनुवाद करे तो उसका अर्थ होता है "जीवन का विज्ञान" (संस्कृत मे मूल शब्द आयुर का अर्थ होता है "दीर्घ आयु" या आयु और वेद का अर्थ होता हैं "विज्ञान"।
एलोपैथी औषधि (विषम चिकित्सा) रोग के प्रबंधन पर केंद्रित होती है, जबकि आयुर्वेद रोग की रोकथाम और यदि रोग उत्पन्न हुआ तो कैसे उसके मूल कारण को निष्काषित किया जाये, उसका ज्ञान प्रदान करता है।
आयुर्वद का ज्ञान पहले भारत के ऋषि मुनियों के वंशो से मौखिक रूप से आगे बढ़ता गया उसके बाद उसे पांच हजार वर्ष पूर्व एकग्रित करके उसका लेखन किया गया। आयुर्वेद पर सबसे पुराने ग्रन्थ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय हैं। यह ग्रंथ अंतरिक्ष में पाये जाने वाले पाँच तत्व-पृथ्वी, जल वायु, अग्नि और आकाश, जो हमारे व्यतिगत तंत्र पर प्रभाव डालते हैं उसके बारे में बताते हैं। यह स्वस्थ और आनंदमय जीवन के लिए इन पाँच तत्वों को संतुलित रखने के महत्व को समझते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति दूसरों के तुलना मे कुछ तत्वों से अधिक प्रभावित होता है। यह उनकी प्रकृति या प्राकृतिक संरचना के कारण होता है। आयुर्वेद विभिन्न शारीरिक संरचनाओं को तीन विभिन्न दोष मे सुनिश्चित करता है।


1.वात दोष:

जिसमे वायु और आकाश तत्व प्रबल होते हैं।

2.पित्त दोष:

जिसमे अग्नि दोष प्रबल होता है।

3.कफ दोष::

जिसमे पृथ्वी और जल तत्व प्रबल होते हैं।
दोष सिर्फ किसी के शरीर के स्वरुप पर ही प्रभाव नहीं डालता परन्तु वह शारीरिक प्रवृतियाँ (जैसे भोजन का चुनाव और पाचन) और किसी के मन का स्वभाव और उसकी भावनाओं पर भी प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए जिन लोगो मे पृथ्वी तत्व और कफ दोष होने से उनका शरीर मजबूत और हट्टा कट्टा होता है। उनमे धीरे धीरे से पाचन होने की प्रवृति, गहन स्मरण शक्ति और भावनात्मक स्थिरता होती है। अधिकांश लोगो मे प्रकृति दो दोषों के मिश्रण से बनी हुई होती है। उदाहरण के लिए जिन लोगो मे पित्त कफ प्रकृति होती है, उनमे पित्त दोष और कफ दोष दोनों की ही प्रवृतिया होती है परन्तु पित्त दोष प्रबल होता है। हमारे प्राकृतिक संरचना के गुण की समझ होने से हम अपना संतुलन रखने हेतु सब उपाय अच्छे से कर सकते है।
आयुर्वेद किसी के पथ्य या जीवन शैली (भोजन की आदते और दैनिक जीवनचर्या) पर विशेष महत्त्व देता है। मौसम मे बदलाव के आधार पर जीवनशैली को कैसे अनुकूल बनाया जाये इस पर भी आयुर्वेद मार्गदर्शन देता है।

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आयुर्वेदिक चिकित्सा का वर्गीकरण | Principles of Ayurveda


आयुर्वेद में इलाज शोधन चिकित्सा और शमन चिकित्सा में विभाजित किया जा सकता है यानी क्रमशः परिशोधक और प्रशामक चिकित्सा।

1.शोधन चिकित्सा:

में शरीर से दूषित तत्वों को शरीर से निकाला जाता है। इसके कुछ उदाहरण है - वमन, विरेचन, वस्ति, नस्य।

2.शमन चिकित्सा:

में शरीर के दोषों को ठीक किया जाता है और शरीर को सामान्य स्थिति में वापस लाया जाता है। इसके कुछ उदाहरण है- दीपन, पाचन (पाचन तंत्र) और उपवास आदि। यह दोनों चिकित्सा प्रकार शरीर में मानसिक व शारीरिक शांति बनाने के लिए आवश्यक हैं। के आर फॉरएवर मे जहाँ पर आयुर्वेदिक तरीके से जीवन जीना सिखाया जाता है। यहाँ पर लोग शांतिप्रिय जीवन जीने का तरीका सीख सकते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा शरीर शुद्धि | Ayurvedic Therapies for Body Purification


1अभ्यंग | Abhyanga:

मन और शरीर के संतुलन के लिए आयुर्वेदिक तेलों से पूरे शरीर की एक साथ मालिश। अभ्यंग रक्त परिसंचरण को बढ़ाता हैं, दोषों का संरेखण करता हैं और विषाक्त पदार्थों का निष्कासन करता हैं। यह एक चिकित्सीय और गहरे आराम का अनुभव है, अभ्यंग से जीवन शक्ति, शक्ति, लचीलापन, और मानसिक/भावनात्मक सम्पूर्णता का बढावा होता है।

2.उज्हिचिल |Uzhichil:

पूरे शरीर की मांसपेशियों की आयुर्वेदिक तेलों से गहरी मालिश, उज्हिचिल अभ्यंग के सभी लाभ देता हैं, यह सभी मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है, और रक्त परिसंचरण में सुधार करता हैं।

3.पिज्हिचिल | Pizhichil:

पिज्हिचिल एक शक्तिवर्धक प्रक्रिया हैं और अधिकांश वात असंतुलन से उत्पन्न होने वाली बीमारियों में यह एक बहुत प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार है। यह जोड़ों और मांसपेशियों से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन करता हैं और फिर जोड़ों की गतिशीलता में सुधार लाता हैं। पिज्हिचिल में पूरे शरीर की मालिश होती हैं जिसमे गर्म औषधीय तेल की एक सतत धारा को ऊपर से शरीर पर डाला जाता हैं।

4.मर्म चिकित्सा | Marma Therapy:

शरीर के ऊर्जा प्रवाह केंद्र में भावनाओं और सूक्ष्म भावनाओं के कारण बनने वाली गांठ हि कई रोगों का कारण हैं। मर्म चिकित्सा शारीरिक कार्य का एक बहुत ही सौम्य रूप है और यह इन गांठो को निकाल कर प्राण (जीवन शक्ति) का स्वतंत्र प्रवाह बढ़ाता है। मर्म चिकित्सा पूरे तंत्र को पुनर्जीवित कर देता हैं।

5.शिरोधारा |Shirodhara:

गर्म तेल की एक सतत धारा को बूंद बूंद से आंखों के बीच में एक विशिष्ट स्वरूप में डाला जाता हैं। माथे पर गर्म तेल की मालिश से शरीर की सभी तंत्रिकाओं की मालिश हो जाती हैं। शीरोधारा मन मे शांति और स्पष्टता लाता है। यह विशेष रूप से पित्त असंतुलन वाले लोगों के लिए उपयोगी है।

6.चेहरे का मर्म |Facial Marma:

चेहरे का मर्म एक गहरे आराम की प्रक्रिया है, जिससे कि चेहरे की मांसपेशियों तनाव से मुक्त हो जाती हैं है और मन को आराम मिलता हैं। चेहरे को अच्छी तरह से एक हर्बल मिश्रण से साफ किया जाता हैं और फिर उस पर भाप या बर्फ लगाया जाता हैं। इसके बाद चेहरे के मर्म बिंदुओ और सिर को अनुकूलित हर्बल तेलों के मिश्रण से सौम्य/ हल्की मालिश की जाती हैं। अंत में चेहरे की त्वचा की एक पौष्टिक हर्बल फेस पैक के साथ मालिश की जाती हैं।

7.मेरु चिकित्सा |Meru Chikitsa:

मेरु चिकित्सा एक स्वाभाविक रूप से प्रभावी न्यूरो मस्कुलर स्केलेटन (तंत्रिका–पेशी-कंकाल)इलाज है जो कि दोनों हि तीव्र और जीर्ण समस्याओं में स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। क्योंकि मेरु चिकित्सा तंत्रिका तंत्र के साथ मिलकर काम करता है, इसलिए यह आम सर्दी से कैंसर तक और कई अन्य समस्याओं के लिए के लिए प्रभावी होना पाया गया है। रीढ़ की हड्डी का उपचार को जो एक प्राचीन और लगभग भूला हुआ उपचार था को श्री श्री आयुर्वेद ने हाल ही में पुनर्जीवित और अद्यतन किया हैं। रीढ़ की हड्डी के कोमल समायोजन के माध्यम से तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) और मस्तिष्क मेस्र्दंडीय द्रव्य (सेरेब्रल स्पाइनल फ्लुइड)का सामान्य कार्य बहाल होता है।

8.स्नेहन /स्नेह्पान |Snehana/ Snehapana:

पंचकर्म चिकित्सा को लेने के लिए स्नेहन किसी व्यक्ति के तंत्र को पहले तैयार करता है। स्नेहन मे घी और तेल जो कि जड़ी बूटियों से औषधीयुक्त होते हैं और चिकत्सक के लिए अनुकूलित होते हैं से ऊतकों और सारे अंगो (अवयव) का पोषण होता हैं। विषाक्त पदार्थों को उनके अव्यवस्थित स्थानो से बाहर निकाल दिया जाता हैं और उन्हें मलाशय, आमाशय आदि जैसे अंगों मे लाया जाता हैं जिससे अंततः वे तंत्र से निष्कासित हो सके।

9.स्वेदन / स्वेद चिकित्सा | Svedana/Sweat Therapy:

स्वेदना शरीर में गर्मी प्रदान करने की चिकित्सा प्रणाली हैं जिससे शरीर के छिद्र और प्रवाह केंद्र खुल सके जिससे विषाक्त पदार्थों आसानी से निष्कासित हो सके। जब शरीर के छिद्र और प्रवाह केंद्र व्यापक रूप से खुल जाते हैं तो स्वेद का निष्कासन उसका परिणाम हैं। गर्मी विषाक्त पदार्थों को आसानी से ऊतकों निकाल देती हैं, शारीरिक तत्व जो गहरे ऊतकों से गैस्ट्रो आंत्र पथ तक विषाक्त अपशिष्ट के परिवहन के लिए जिम्मेदार हैं भी गतिशील हो जाते हैं।

10.नस्य | Nasya:

नासिका के सीधे मार्ग के माध्यम से प्राण(जीवन शक्ति) शरीर में प्रवेश करती है। नस्य मे नासिका के प्रवाह केंद्र के माध्यम से औषधीय तेलों का संचालन शामिल है। नस्य सिर के प्रवाह केन्द्रों साफ करके और उन्हें खोलकर मस्तिष्क के कार्य में सुधार लाता हैं, जिससे प्राण के प्रवाह में सुधार होता हैं। नस्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण इलाज है जो मस्तिष्क के ऊतकों और ग्रंथियों को उत्तेजित करता है और कई स्वास्थ्य समस्याओं मे तुरंत राहत देता है।

11.विरेचन | Virechana:

विरेचन विरेचक के उपयोग से एक सफाई की चिकित्सा है। यह गैस्ट्रो आंत्र पथ के निचले और मद्य क्षेत्रों से विषाक्त पदार्थों निकाल देता हैं। विशिष्ट हर्बल दवाओं को मुंह के माध्यम से दिया जाता हैं जिससे आंतो से निष्कासन प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती हैं। विरेचन कई शारीरिक समस्याओं के लिए एक समाधान है। विशेष रूप से पित्त और कफ विकारो के लिए।

12.पद अभ्यंग /फुट मालिश |Pada Abhyanga/ Foot Massage:

तेल से पैर की मालिश करने से कुछ बिंदु जो शरीर के विभिन्न अंगों /अवयवो के अनुरूप हैं उत्तेजित हो जाते हैं और पूरे शरीर को पोषण प्राप्त होता हैं। पैर पर ताजी मालिश करने से और शरीर में रक्त परिसंचरण और प्राण का प्रवाह बढ़ जाता हैं। पद अभ्यंग से पूरे शरीर में अच्छापन और गहरा विश्राम महसूस होता हैं।

13.पिंड स्वेद | Pinda Sweda:

पूरे शरीर पर स्वेद की चिकित्सा। जड़ी बूटियों और अनाज की औषधीय लेप को दूध में उबाल कर उसका एक प्रलेप बना कर उसे एक कपडे मे लपेटा में जाता हैं। इसे निरंतर तुल्यकालन परिरूप में पूरे शरीर पर लगातार मला जाता हैं। पिंड स्वेद ऊतको मे पोषण प्रदान करके पूरे शरीर को पुनर्जीवित करता हैं, ऊर्जा और सक्रियता को बहाल करता हैं, और तनाव को मुक्त करता हैं।

14.तलपोथिचिल /शिरोलेप |Thalapothichil, Shirolepa:

यह पद्धति में सिर का इलाज होता है। जिससे तंत्रिका तंत्र स्थिर हो जाता हैं और सिर के मर्म बिंदु सक्रिय हो जाते हैं।

15.शीरोवस्ति | Shirovasti:

यह सिर पर औषधीय तेल के उपयोग की चिकित्सा है, जो विभिन्न गर्दन और सिर की बीमारियों के लिए इलाज है। इससे गर्दन के ऊपर के क्षेत्र की तंत्रिकाओ का पोषण होता है और यह उन्हें तरुण बना देता हैं और यह कई आँख, कान और नाक के तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार के इलाज मे सहायक हैं। इससे जीर्ण सिरदर्द का इलाज भी किया जाता है।

16.ओस्टीओपेथी |Osteopathy:

यह एक समग्र चिकित्सा तकनीक है जो शरीर की संरचना और उसके शरीर के सम्बन्धी कार्य पर काम करती है। यह शरीर की बुद्धि से अपने आप प्राकृतिक तरीके से इलाज करने पर आधारित है। यह तीव्र और जीर्ण पीठ का दर्द, सिरदर्द में प्रभावी है। अंगों /अवयवों की समस्याएँ का इलाज भी ओस्टीओपेथी के उपयोग से किया जा सकता है।

The word Ayurveda derived from AYU and VEDA. AYU means life VEDA means science or knowledge. Ayurveda means the science of life. Charaka defines "That science is designated as Ayurveda which deals with advantage and disadvantage as well as happy and unhappy states of life along with what is good and bad for life, its measurement and the life itself (Charaka Sutra 1 - 4)" Ayurveda embraces all living things, human and Non-human. It is divided into three main branches viz., Nara Ayurveda dealing with human life, Satva Ayurveda the science dealing with animal life and its diseases, Vriksha Ayurveda the science dealing with plant life, its growth and diseases. It is amply clear that Ayurveda is not only a system of medicine but also a way of life for complete positive health and spiritual attainments. Ayurveda believes that positive health is the basis for attaining four cherished goals of life (chaturvidh purushartha) viz., Dharma, Artha, Kama, Moksha. All these four goals cannot be achieved without sound positive health.


Ayurveda is an ancient Indian system of medicine which began about 5,000 years ago. It is not just one treatment.


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आयुर्वेद किसी के पथ्य या जीवन शैली (भोजन की आदते और दैनिक जीवनचर्या) पर विशेष महत्त्व देता है। मौसम मे बदलाव के आधार पर जीवनशैली को कैसे अनुकूल बनाया जाए इस पर भी आयुर्वेद मार्गदर्शन देता है। आयुर्वेद के अनुसार दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए समय पर हितकारी और मौसम के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। इसलिए खानपान ऐसा करें, जो स्वास्थ्यप्रद हो। ऐसे बहुत से खाद्य पदार्थ हैं, जिन्हें मौसम के अनुसार खाना चाहिए, अन्यथा शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग पनपने लगते है। जैसे की गर्मियों में तापमान के बढ़ते ग्राफ के साथ ही खानपान में लापरवाही बरतनी शुरू हो जाती है। सही समय पर खाना न खाना, बाहरी चीज़ों का ज्यादा इस्तेमाल करना जैसे की डिब्बा बंद भोजन का सेवन करना, बर्गर, पिज़्ज़ा इत्यादि का ज्यादा सेवन करना, बासी खाने का सेवन करना जैसी चीजों के कारण फ़ूड पॉइजनिंग जैसी समस्या हो जाती है। पहले ये समझने की आवश्यकता है की फ़ूड पॉइजनिंग क्या है और कैसे होती है ? गर्मियों के मौसम में उल्टी, दस्त, बुखार, पेट दर्द जैसी समस्याएं सामने आने लगती है लेकिन हम ये बात समझ ही नहीं पाते हैं की ये समस्या आखिर किन कारणों से हुई है ? जबकि इसका मुख्य कारण है खानपान में गड़बड़ी। फूड पॉइजनिंग एक आम समस्या है लेकिन कुछ मामलों में यह बहुत गंभीर भी हो सकती है जिसके कारण व्यक्ति की मौत भी हो जाती है। ये समस्या शरीर में पित्त बिगड़ने की वजह से होता है। आयुर्वेद के अनुसार पित्त दोष शरीर की चयापचय क्रियाओं को नियंत्रित करता है। पानी और अग्नि से बना यह दोष पाचन की प्रक्रिया को नियमित करने में मदद करता है। लेकिन पित्त के बढ़ जाने से डायरिया, एसिडिटी, जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि कुछ जड़ी-बूटियों के उपयोग पित्त दोष को संतुलित किया जा सकता है। :


फूड पॉइजनिंग के मुख्य लक्षण :-


•पेट में मरोड़ (cramps)
•डायरिया
•उल्टी
•भूख न लगना
•हल्का बुखार
•कमजोरी
•सिरदर्द होना
•जी मिचलाना
•बेहोसी महसूस होना
इन लक्षणों के अलावा सुस्ती, ब्लड प्रेशर और शरीर में रक्त की कमी होने पर भी सतर्क होने की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे ये लक्षण गंभीर होते दिखाई देते है तो लापरवाही बरतनी खतरनाक साबित हो सकती है।

19.आयुर्वेद के अनुसार इनसे बचने के उपाय :-


आयुर्वेद कहता है कि अगर पित्त का दोष है, तो आपको बादाम, अनाज, हरी सब्जियां, नारियल, सलाद और दलिया का सेवन करना चाहिए ।
1. हरीतकी का चूर्ण :- सुबह शाम हरीतकी का चूर्ण लेने से पिट से संबंधित रोग ठीक होते है।
2. नींबू में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, इसलिए इसका सेवन करें, यह आपके पूरे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता हैं। इसके अलावा, फूड पॉइजनिंग का कारण बनने वाले विषाणुओं से छुटकारा दिलाने में मदद करता हैं।
3. तुलसी में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फूड पॉइजनिंग में राहत पहुंचाते हैं। यह आपके पेट को भी आराम पहुंचाता है और फूड पॉइजनिंग के लक्षणों को दूर करता है।
4. फ़ूड पॉइज़न होने पर दिन में आप लहसुन की कच्ची कली का सेवन कर सकते हैं इसमें एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो खाने से हुए रोगों को दूर करने में मदद करता हैं।
5. विटामिन-सी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो आपके शरीर से बैक्टीरिया और टॉक्सिन दूर करने में मदद करते हैं । यही कारण है कि विटामिन-सी फूड पॉइजनिंग होने पर काफी फायदा पहुंचाता हैं। अगर आप विटामिन-सी के सप्लीमेंट नहीं लेना चाहते, तो विटामिन-सी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करें।
6. आंवले में फूड पॉइजनिंग के दौरान होने वाली जी-मिचलाने और उल्टी आने की समस्या से राहत दिलाने में आंवला आपको फायदा पहुंचा सकता है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन-सी होता है।यह पेट की समस्याओं को भी दूर करता है।
7. अदरक का सेवन करना इस समस्या में बहुत लाभकारी रहता है।अदरक में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो खाने से हुई समस्या को ठीक करने में मदद करता हैं।
8. जितना हो सके पेय पदार्थ पीजिए- पानी, डिकैफनेटेड चाय या जूस जो भी आप पी सकते हैं वो लें इससे आप तरल पदार्थ की कमी दूर कर सकते हैं और निर्जलीकरण को रोकने में भी ये मददगार होगा।
9 .शराब, दूध या कैफीनयुक्त पेय पदार्थों को पूरी तरह अवॉयड करने की कोशिश करें।
10. तुलसी में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फूड पॉइजनिंग में राहत पहुंचाते हैं। यह आपके पेट को भी आराम पहुंचाता है और फूड पॉइजनिंग के लक्षणों को दूर करता है। फूड पॉइजनिंग का यह उपाय काफी कारगर हो सकता है।
11. फूड पॉइजनिंग में उल्टी, दस्त लगते हैं, तो शरीर में पानी की कमी होने लगती है। अगर शरीर में पानी की कमी हुई, तो समस्या और बढ़ सकती है। ऐसे में जरूरी है कि आप तरल पदार्थ का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें। इसके अलावा आप नारियल पानी भी पी सकते हैं।
ध्यान रखें :- गर्मियों के मौसम में कम और शुद्ध खाना ही सबसे बेहतर उपाय है। पेट खराब होने पर फैट और कम फाइबर वाली चीजों का सेवन करें क्योंकि अत्यधिक फैट को पचाना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में केला, चावल, केला आदि का सेवन करना चाहिए।

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LIVER


Liver: Functions, Problems, Diseases, Diet Plan, Precautions and Ayurvedic Remedy Liver is the largest gland and the largest organ in the human body. It is a part of human digestive system and plays an important role in the formation of chemicals to digest food, protein synthesis and detoxification. Liver is present under the rib cage on the right side of the abdomen.
Liver Problems – A Major Concern to Look Out for Nowadays, every person has some problems related to the stomach. These problems are more due to liver disturbances. The food is not able to pay special attention, due to which the liver becomes impaired. This includes getting fatty liver, swelling and infection in the liver. If our food is not digested properly or we are having some kind of stomach upset, then we should understand that these are symptoms of liver failure. Ignoring it can prove fatal.
Some Common Signs of Liver Issue & Problems -: The symptoms of liver disease may be different and it depends on the cause of the disease. Here are some of the symptoms of liver diseases. If these symptoms are present in your body then it’s the time to think for a remedy or Ayurvedic treatment. Most liver problems occur due to high oil and spicy food, drinking too much alcohol or eating too outside food (junk food, fry items etc.) There can be many symptoms of liver failure or liver disease. Some of the common symptoms of liver disease, bad mouth breathe, dark spots under the eyes, pain in the stomach, food is not getting digested properly, white spots on the skin, urine or stool darkening. We can find out about liver failure only after investigation. Yellow Skin & Eyes: If your eyes and skin are yellow or turning yellow or in case remaining yellow then it is the symptom of jaundice. Jaundice can be a serious disease and it can lead to death if not treated properly and timely. So, if you see such kind of symptom in your body then don’t ignore it. Dark Urine and Pale/bloody or dark Stool: If you are experiencing dark urine or bloody or black stool, then this is also the symptoms of liver disease. Some of the other symptoms that indicates towards the liver issue or problem ares – Swollen Ankles, Swollen Legs or Abdomen, nausea, decrease in appetite, vomiting etc.
Liver Diseases -: Liver can experience a range of problems. When the liver is healthy it works properly and efficiently but a diseased liver can be very dangerous and sometimes it can cause death. Fatty liver, hepatitis, and cirrhosis are the most common liver-related problems. Where fat droplets accumulate in the liver and disrupt its functioning when there is a problem of fatty liver. When there is inflammation in the liver, this is due to hepatitis. At the same time, symptoms of many liver related problems in cirrhosis are seen simultaneously. When there is Liver Cirrhosis, the liver tissue starts to get damaged. Some of the most common liver diseases are:
Liver Cirrhosis: Liver Cirrhosis is the most serious disease after liver cancer. The final treatment for this disease is a liver transplant. In this disease, liver cells are destroyed on a large scale. At the same time, the structure of the lever also becomes abnormal, leading to a condition of portal hypertension.
Fascioliasis: It is a liver disease that is caused by the parasitic worm. This worm is known as Liver Fluke. This worm can live in the liver for months or for many years. Liver Fluke can cause disease in the human body and in animals. The disease can’t be spread from one person to another. But if people or animals eat contaminated fish or drink contaminated water, they can get infected. Alcoholic Liver Disease: Drink too much then you are definitely get a disease in the liver. Too much alcohol can directly damage the liver and it can lead to liver failure. It is one of the main causes of Liver Cirrhosis.
Liver Cancer: Any of the cancer that starts in the liver is known as liver cancer. The most common type of liver cancer is Hepatocellular carcinoma. Liver cancer develops very slowly but you can notice the symptoms at an early stage. Some of the common signs of liver cancer includes – itchy skin, nausea, vomiting, jaundice, pain and swelling in abdomen, unexpected weight loss etc.
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Liver Care Kit is a perfect Ayurvedic product for all liver related problems. It helps in curing the disease by killing the root cause of disease.

The Liver Care kit helps in the prevention of infection in the liver and also helps in removing the infection. It is an Ayurvedic product so there is no chance of any side effects.


Diet Plans – What To Include & What to Avoid -: Food to Include: The diet for the liver disease depends on what type of liver problem is there. As we all know that the liver is the powerhouse of an organ. It is helpful in many of the essential tasks. It also helps in the breakdown of alcohol, natural byproducts of metabolism and medications. Food items that are good for the liver are: Coffee, Tea, Grapefruit, Blueberries, Cranberries, Grapes, Prickly Pear, Juice of Beetroot, Brussels sprouts, broccoli, mustard greens, nuts, fatty fish, and Olive Oil.
Food to Avoid: If you are facing problem in liver or have any of the liver disease the intake of listed things should be stopped immediately. You have to avoid – Alcohol (main cause of fatty liver), Added sugar products (such as candies, fruit juices, cold drinks and cookies), Fried Foods, Salt (not too much), White Breads, Pasta, Rice and Red Meat. Some Precautions to Take
• Don’t drink too much alcohol and if possible avoid it.
• Don’t mix medications.
• Don’t ever mix alcohol with drugs (medicines).
• When you are travelling to any area where hepatitis A or B be a concern then vaccination is essential.
• For Hepatitis A & B, there are vaccinations but there is no vaccination for Hepatitis C, so it is advised to caution while having sex, piercing and tattoos.
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